ABOUT THE BOOK:
Blog Tittle: Formation of Universe Summary
Name: Fundamentals of Physical Geography
Author: NCERT
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ब्रह्माण्ड की रचना
हम सब पृथ्वी पर रहते है और पृथ्वी एक ऐसे मंडल का हिस्सा है जिसमे इसके जैसे सात और ग्रह है इनके नाम इस तरह है बुद्ध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण। ये आठों ग्रह मिलकर इस सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते रहते है। सूर्य इकलौता इनकी ऊर्जा और ऊष्मा का स्रोत है।
बृहष्पति और मंगल के बीच से कुछ पत्थर भी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते रहते है इन पथरो को छुद्र ग्रह कहते है छुद्र ग्रह और सूर्य के बीच वाले बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, और मंगल आंतरिक ग्रह कहलाते है जबकि बाकी चार बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण बाह्य ग्रह। आंतरिक ग्रह धातु और शैल के बने है जबकि बाह्य ग्रह गैस के। क्यों ? क्यूंकि जब ये सारे ग्रह बने थे तो सूर्य के ज्यादा करीब होने की वजह से सूर्य से निकली सौर पवन आंतरिक ग्रह की धूल और गैस उड़ा कर ले गयी और भारी धातुएं और पत्थर ही बचे रह गए जबकि सूर्य से दूर होने की वजह से सौर पवन बाह्य गैसों की धूल नहीं उड़ा पायी। ठोस होने की वजह से आंतरिक ग्रहो को पार्थिव ग्रह भी कहा जाता है और बाह्य ग्रहो को जोवियन ग्रह कहा जाता है जोवियन का अर्थ होता बृहस्पति (JUPITER) की तरह।
ये सारे ग्रह, छुद्र ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु मिलकर एक मंडल बनाते है जिसे सौरमंडल कहते है।
वैज्ञानिक और दार्शनिक हमेशा से सौर्यमंडल के बनने के तरीकों पर खोज करते रहे। तीन सिद्धांत ऐसे थे जिन्होंने इन ग्रहो को बनने के तरीके समझाए थे।
प्रारंभिक सिद्धांत
निहारिका परिकल्पना
हमारे ग्रहो का निर्माण एक धीमी गति से घूमते हुए पदार्थो के बादल से हुआ है, बादल पदार्थो से बना हुआ था जो सूर्य की युवावस्था में उससे जुड़े हुए थे।
यह परिकल्पना जर्मनी के एक दार्शनिक ने की थी जिनका नाम इम्मैनुएल कांट था और बाद में लाप्लास ने इसको संसोधित करके बताया था। इस परिकल्पना को निहारिका परिकल्पना नाम दिया गया। निहारिका एक बादल होता है जो धूल, हाइड्रोजन, हीलियम और अन्य आयोनिज़्ड गैसों से बना होता है। लाप्लास ने यह संसोधन 1796 में किया था।
द्वैतारक सिद्धांत
1900 में चेम्बरलेन और मोल्टेन ने कहा की ब्रह्मण्ड में एक घूमता हुआ तारा सूर्य के नजदीक से गुजरा जिससे तारे के गुरुत्वाकर्षण से सूर्य की सतह से सिगार के आकार का कुछ पदार्थ निकलकर अलग हो गया। जब यह तारा सूर्य से दूर चला गया तो सिगार के आकार का ये पदार्थ सूर्य के चारो ओर घूमने लगा और धीरे-धीरे संघनित होकर ग्रहो में बदल गया। पहले सर जेम्स जीन्स बाद में सर हेरोल्ड जैफरी ने इस मत का समर्थन किया। इस सिद्धांत को द्वैतारक सिद्धांत कहते है। इस सिद्धांत में ये माना जाता है की सूर्य का एक साथी तारा अस्तित्व में है।
शिमिड-लिट्ट्लेटों अभिवृद्धि सिद्धांत
तीसरा और आखिरी सिद्धांत रूस के ऑटो शिमीड और जर्मनी के कार्ल वाईजास्कर ने दी इन्होने निहारिका परिकल्पना को दोबारा से विचार किया। उनके विचार से सूर्य एक सौर्य निहारिका से घिरा हुआ था जो हाइड्रोजन, हीलियम और धुल कणो से बनी हुई थी इन कणो के आपस में घिसने और टकराने से एक चपटी तश्तरी के आकर के बादल का निर्माण हुआ और अभिवृद्धि की प्रक्रिया से ग्रह बने। खगौल भौतिकी में अभिवृद्धि एक विकास होता है जिसमे छोटे-छोटे कण गुरुत्वाकर्षण की वजह से इकठ्ठा होकर एक बड़ा सा पदार्थ बनाते है। ये सिद्धांत 1950 में आया था।
ये तीनो सिद्धांत सिर्फ ग्रहो के बनने के तरीको को बता रही थी इसलिए वैज्ञानिको ने ग्रहो और सूर्य को नहीं बल्कि पुरे ब्रह्माण्ड को समझने का प्रयास किया।
ये तीनो सिद्धांत सिर्फ ग्रहो के बनने के तरीको को बता रही थी इसलिए वैज्ञानिको ने ग्रहो और सूर्य को नहीं बल्कि पुरे ब्रह्माण्ड को समझने का प्रयास किया।
आधुनिक सिद्धांत
बिग-बैंग
ब्रह्माण्ड की उत्तपत्ति के सम्बन्ध में सबसे लोकप्रिय सिद्धांत बिग-बैंग सिद्धांत है जो बताता है की आरम्भ में वो सभी पदार्थ जिनसे ये ब्रह्माण्ड बना एक बहुत छोटे गोले (singular atom) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे इस गोले का आयतन बहुत ही कम और तापमान और घनत्व अनंत था। इसमें एक भयानक विस्फोट हुआ और एक वृह्त विस्तार हो गया।
बिग-बैंग का ये सिद्धांत तब आया जब एक वैज्ञानिक एडविन हब्बल ने बताया की ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है और आकाशगंगाये एक दुसरे से दूर जा रही है।
बिग-बैंग से सम्बंधित कुछ बाते:
(1) वैज्ञानिक बताते है की बिग-बैंग आज से करीब 13.7 अरब वर्षों पहले हुआ था।
(2) विस्फोट के बाद एक सेकंड के अल्पांश में ही इतना बड़ा विस्तार हो गया था फिर उसके बाद विस्तार की गति धीमी पड गयी।
(3) बिग-बैंग के शुरुवाती तीन मिनट के अंदर ही पहला अणु बनना शुरू हो गया था।
(4) बिग-बैंग से तीन लाखो वर्षो के दौरान तापमान 4500 K (कैल्विन) तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ, ब्रह्माण्ड पारदर्शी हो गया।
निष्कर्ष के हिसाब से इतने बड़े ब्रह्माण्ड की रचना सिर्फ एक छोटे गोले से हुई है जिससे धरती की उतपत्ति हुई और धरती पर जीवन की।
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