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Blog Title: Women, Cast and Reform summary
Name: History Our Past 3 Part-2
Author: NCERT
Name: History Our Past 3 Part-2
Author: NCERT
WOMEN, CAST AND REFORM SUMMARY
क्या आपने कभी सोचा है की 200 साल पहले बच्चो की ज़िंदगी कैसी रही होगी ?
आज हमारे देश भारत में मध्यवर्गीय परिवार की ज्यादातर लड़किया स्कूल जाती है बड़ी हो जाने पर वे यूनिवर्सिटी जाती है और उसके बाद उनमे से कई नौकरिया भी करती है। वे अपने परिवार की देखभाल करती है। सारी औरते वोट डाल सकती है सभी आदमीयो की तरह और यहाँ तक की चुनाव के लिए खड़ी भी सकती है। शादी के लिए उन्हें कानूनी रूप से बालिग़ होना पड़ता है और कानून के अनुसार वे किसी भी समुदाय या जाती के आदमी से शादी कर सकती है और हाँ, विधवाएं भी दोबारा शादी कर सकती है। यहाँ ये कहना सही होगा की आज एक आदमी की तरह एक औरत भी समाज में बराबर का औधा रखती है।
लेकिन, चीजे 200 साल पहले बहुत अलग थी। अधिकतर बच्चो की शादिया बहुत कम उम्र में ही कर दी जाती थी। हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के आदमी एक से अधिक पत्नियाँ रख सकते थे। औरतो की तो शिछा तक कोई पहुँच ही नहीं थी। देश के बहुत से हिस्सों में लोगों की एक धारणा थी की अगर कोई लड़की पढ़ेगी तो वो जल्दी विधवा हो जाएगी। औरतो के पास संपत्ति के अधिकार भी सीमित थे। इसके अलावा देश के कुछ हिस्सों में एक विधवा औरत को उसके पति की जलती चिता पर ही जिन्दा जलना पड़ता था फिर इसमें चाहे उसकी मर्ज़ी हो या न। इस तरीके से ज़िंदा मार दी औरतो को सती कहा जाता है। सती जिसका मतलब होता है पवित्र।
औरतो की इस स्थिति से राजाराम मोहन रॉय बहुत प्रभावित हुए थे। राजाराम मोहन रॉय एक अच्छी तरह से शिछित इंसान थे जिन्हे संस्कृत, फ़ारसी और कई भारतीय और यूरोपियन भाषा का ज्ञान था। ब्रिटिशर्स भी उनकी एक विद्वान् आदमी के रूप में आदर करते थे। वो एक समाज सुधारक थे। उन्होंने कलकत्ता में ब्रह्मसभा नाम से एक सुधार संघ बनाया था जिसे बाद में बरह्मोसमाज के नाम से जाना गया था। उनका मानना था की समाज में बदलाव बहुत जरुरी है वो लोगो को इस बात के लिए उत्साहित करते की पुराने व्यवहार को छोडो और जीवन का नया ढंग अपनाने के लिए तैयार हो। उन्होंने विधवाओं की सती के खिलाफ कैम्पेनिंग शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने पुराने ग्रंथो को समझाते हुए कहा की इनमे कहीं भी विधवा औरत को जलाने की अनुमति नहीं दी गयी है उन्होंने पर्चे बनाकर लोगो तक अपनी बाते पहुंचाई। बाद में ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी इस बात को सुना और आखिरकार 1829 में सती पर पाबन्दी लगा दी गयी।
विधवाओं की दोबारा शादी के लिए कानून
राजाराम मोहन रॉय की इस पुराने ग्रंथो की नीति को एक बहुत प्रसिद्ध समाजसुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवाओं की दोबारा शादी के लिए इस्तेमाल किया। उन्होंने सलाह दी की विधवाएं फिर से शादी कर सकें। उनका सुझाव ब्रिटिश अधकारियों ने माना और एक नया नियम विधवाओं की दोबारा शादी के लिए 1856 में बना दिया गया।
इसके बाद ये आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों मे भी फैलने लगा। वीरासालिंगम पांटुलु ने मद्रास खंड के कुछ तेलुगु बोलने वाले इलाको में एक विधवा पुनर्विवाह संघ बनाया। उत्तर में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
इन सबके बावजूद विधवाएं जिन्होंने दोबारा शादी की वो बहुत कम ही थी क्यूंकि समाज ने उन्हें स्वीकार ही नहीं किया और रूढ़ीवादी लोग लगातार नए नियमो का विरोध करते रहे।
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